Voice of an Ex-Serviceman
आवाज़ : मोहिन्दर मेहता , भूतपूर्व नौसेनिक , वरिष्ठ नागरिक
436/14 , फरीदाबाद
भ्रष्टतंत्र कार्यप्रणाली राष्ट्रीय स्तर पर : क्या हम सुरक्षित हैं ?
यदि हम 26/11 घटना क्रम पर ध्यान दें तो पायेंगे कि एक घटना जिस पर कम लोगों का ध्यान गया , उस घटना को मीडिया ने बहुत कम समय के लिये दर्शाया , शायद भ्रष्टतंत्र के दबाव में जल्दी हटा दिया होगा | जिस समय Sasoon Dock जहाँ terrorist अपनी बोट से उतरे तो वहां एक मछुआरा जिसे इन लोगों पर शक हुआ उसने वहां तेनात पुलिसमैन को आगाह किया कि “ यह अपने आदमी नहीं हैं ” | पुलिस जैसा की आम करते हैं, मुहं फेर लिया |
इसके बाद जैसा कि सब जानते हैं कि terrorist आराम से टूरिस्ट की तरह taxi ले कर अपने गंतव्य पर निकल पड़े |
जिस मछुआरे ने पुलिस को आगाह किया था, उसके चेहरे पर कडुवाहट थी जो शायद कह रही थी कि अगर वहां पुलिस नहीं होती तो मछुआरे terrorists को fishing hooks में लटका देते |
क्या इस तरह भ्रष्टतंत्र की कार्य प्रणाली से 26/11 रुक सकते हैं, क्या हम अजमल कसाब को बिरियानी खिलाते रहेंगे ?
भ्रष्टतंत्र कार्यप्रणाली आम आदमी के स्तर पर : क्या हम सुरक्षित हैं ?
मैंने 28/3/11 को खेड़ी पुल पुलिस चौकी फरीदाबाद में tres-pass की शिकायत दर्ज करायी, यह शिकायत मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती साबित हो रही है |
1/4/11 को पुलिस ने मेरी समस्या समाधान करने के लिये भ्रष्टतंत्र प्रणाली के एक मसीहा वकील सुनील नागर और उसके छह गुंडों को पुलिस चौकी में बुलाया, सुनील नागर पुलिस का खास आदमी है जिससे मेरा कोई लेना देना नहीं है | इसके पश्चात मेरे पर झूठा मुकदमा दायर कर दिया, मुझे जान से मारने के इरादे से अपहरण का प्रयत्न किया, मेरे प्लाट पर गुंडों ने दीवार तोड़ कर कब्ज़ा कर लिया |
इस भ्रष्टतंत्र प्रणाली को पुलिस का सहयोग प्राप्त है | मैंने इस खिलाफ उपायुक्त डॉ प्रवीण कुमार से शिकायत की, उन्होंने आरोपिओं के खिलाफ कार्यवाही के सख्त निर्देश दिये परन्तु पुलिस की चतुराई ने उनके निर्देशों को विफल कर दिया | उपायुक्त डॉ प्रवीण कुमार के निर्देशों पर अपहरंकर्ताओं पर FIR दर्ज हो गयी है परन्तु कब्ज़ा हटाने से पहले पुलिस ने आरोपिओं को पहले खबर कर दी, कब्ज़ा नहीं हट सका |
कोर्ट में पीड़ित पक्ष का वकील अपनी फ़ीस लेकर कोर्ट में वकालतनामा दाखिल करने के बाद मुजरिमों के खिलाफ कार्यवाही में झिझकते/ डरते हैं , मैं अब तक चार वकील बदल चुका हूँ जब की मुजरिमो का एक ही वकील है शायद जुर्म से पैदा हुई कमाई में हिस्सेदार है, जुर्म को बढावा देते हैं |
यह एक अहम प्रश्न है कि क्या पुलिस / वकील जुर्म की कमाई में हिस्सेदार है ? क्या ऐसे वातावरण में न्याय प्रक्रिया काम कर सकती है ?
इसके अतिरिक्त पीड़ित को छलावा देने के लिये कई समाजसेवी / वरिष्ठ नागरिक / भ्रष्ट्राचार विरोधी संस्थाएं भी इस धंधे में लिप्त हैं, कि उनकी बहुत उपर तक पहुँच है, केवल वह ऐसे काम करा सकते हैं | पुलिस / कोर्ट / न्याय प्रक्रिया ऐसे काम नहीं करा सकते |
इन संस्थाओं का यह बहुत उपर तक वाला कौन है और उससे आम आदमी या देश का क्या भला हो रहा है ?
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